मानव जाति का इतिहास राजाओं और बादशाहों का इतिहास है। जब हम यह इतिहास पढ़ते हैं तो इसमें कहीं कहीं किसी सच्चे इंसान की दास्तान भी पढ़ने के लिए मिल जाती है। इन्हीं सच्चे लोगों में से एक हैं हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम। आज दुनिया उनके नाम को जानती है। उनके नाम को जानने के बावजूद लोग उनके काम को ठीक से नहीं जानते। वे लोग भी उनके काम को ठीक से नहीं जानते, जो कि उनका अनुयायी होने का दावा करते हैं। ख़ुद उनके सामने भी उनके शिष्य बहुत बार उनकी बात की मंशा को नहीं समझ पाते थे क्योंकि अक्सर वे अपनी बात मिसाल और दृष्टांत के ज़रिये कहते थे। ऐसा वे इसलिए करते थे कि जो लोग यहूदियों के धर्माधिकारी बने हुए थे वे पहले भी पैग़म्बरों को क़त्ल कर चुके थे और अब वे हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को भी क़त्ल करने की फ़िराक़ में थे। ये लोग इंसानों में से शैतान होते हैं। शैतान का काम लोगों को बहकाना है और पैग़म्बरों का काम उन्हें सीधा रास्ता दिखाना होता है। पैग़म्बरों आते हैं और वे अल्लाह का कलाम, ईश्वर की वाणी लोगों को सुनाते हैं। लोग उन्हें सुनते हैं तो शैतान बेचैन हो जाता है। वह जानता है कि जब तक इंसान अल्लाह के कलाम से, ईश्वर की वाणी से जुड़ा रहेगा, तब तक वह उसे हरगिज़ गुमराह नहीं कर सकता। इसलिए वह कोशिश करता है कि इंसान के दिल में अल्लाह का कलाम न रहे। इस हक़ीक़त को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने अपने अल्फ़ाज़ में बयान किया है तो उनके साथी उनकी मंशा को समझ ही नहीं पाए।
देखिए बाइबिल-
दृष्टान्त-कथाओं का प्रयोजन
10 फिर यीशु के शिष्यों ने उसके पास जाकर उससे पूछा, “तू उनसे बातें करते हुए दृष्टान्त कथाओं का प्रयोग क्यों करता है?”
11 उत्तर में उसने उनसे कहा, “स्वर्ग के राज्य के भेदों को जानने का अधिकार सिर्फ तुम्हें दिया गया है, उन्हें नहीं।12 क्योंकि जिसके पास थोड़ा बहुत है, उसे और भी दिया जायेगा और उसके पास बहुत अधिक हो जायेगा। किन्तु जिसके पास कुछ भी नहीं है, उससे जितना सा उसके पास है, वह भी छीन लिया जायेगा। 13 इसलिये मैं उनसे दृष्टान्त कथाओं का प्रयोग करते हुए बात करता हूँ। क्योंकि यद्यपि वे देखते हैं, पर वास्तव में उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता, वे यद्यपि सुनते हैं पर वास्तव में न वे सुनते हैं, न समझते हैं। 14 इस प्रकार उन पर यशायाह की यह भविष्यवाणी खरी उतरती है:
‘तुम सुनोगे और सुनते ही रहोगे
पर तुम्हारी समझ में कुछ भी न आयेगा,
तुम बस देखते ही रहोगे
पर तुम्हें कुछ भी न सूझ पायेगा।
15
क्योंकि इनके हृदय जड़ता से भर गये।
इन्होंने अपने कान बन्द कर रखे हैं
और अपनी आखें मूँद रखी हैं
ताकि वे अपनी आँखों से कुछ भी न देखें
और वे कान से कुछ न सुन पायें या
कि अपने हृदय से कभी न समझें
और कभी मेरी ओर मुड़कर आयें और जिससे मैं उनका उद्धार करुँ।’
16 किन्तु तुम्हारी आँखें और तुम्हारे कान भाग्यवान् हैं क्योंकि वे देख और सुन सकते हैं। 17 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, बहुत से भविष्यवक्ता और धर्मात्मा जिन बातों को देखना चाहते थे, उन्हें तुम देख रहे हो। वे उन्हें नहीं देख सके। और जिन बातों को वे सुनना चाहते थे, उन्हें तुम सुन रहे हो। वे उन्हें नहीं सुन सके।
बीज बोने की दृष्टान्त-कथा का अर्थ
18 “तो बीज बोने वाले की दृष्टान्त-कथा का अर्थ सुनो:
19 “वह बीज जो राह के किनारे गिर पड़ा था, उसका अर्थ है कि जब कोई स्वर्ग के राज्य का सुसंदेश सुनता है और उसे समझता नहीं है तो दुष्ट आकर, उसके मन में जो उगा था, उसे उखाड़ ले जाता है।
20 “वे बीज जो चट्टानी धरती पर गिरे थे, उनका अर्थ है वह व्यक्ति जो सुसंदेश सुनता है, उसे आनन्द के साथ तत्काल ग्रहण भी करता है। 21 किन्तु अपने भीतर उसकी जड़ें नहीं जमने देता, वह थोड़ी ही देर ठहर पाता है, जब सुसंदेश के कारण उस पर कष्ट और यातनाएँ आती हैं तो वह जल्दी ही डगमगा जाता है।
22 “काँटों में गिरे बीज का अर्थ है, वह व्यक्ति जो सुसंदेश को सुनता तो है, पर संसार की चिंताएँ और धन का लोभ सुसंदेश को दबा देता है और वह व्यक्ति सफल नहीं हो पाता।
23 “अच्छी धरती पर गिरे बीज से अर्थ है, वह व्यक्ति जो सुसंदेश को सुनता है और समझता है। वह सफल होता है। वह सफलता बोये बीज से तीस गुना, साठ गुना या सौ गुना तक होती है।”
-मत्ती 13:10-23
अल्लाह का नबी, जो कि अल्लाह कि तरफ़ से आता है और लोगों को ईमान सिखाता है, उस पर भी उसके बारे में लोगों को बदगुमान किया जा सकता है, उस पर भी वक्त के उलमा कुफ़्र का फ़तवा लगा सकते हैं। यह एक हैरान कर देने वाली घटना है लेकिन ऐसा वाक़ई हुआ।
इससे भी ज़्यादा बड़ा ज़ुल्म यह किया गया कि अल्लाह की ज़मीन से अल्लाह के कलाम को ही ग़ायब कर दिया जाता था। यहूदी आलिम अपनी किताब मूल तौरात खो चुके थे और ईसा मसीह अ. के ज़रिये जो इंजील आई, उन्होंने उसे कहीं न तो लिखा और न ही लिखने दिया। ईसा मसीह अ. के सैकड़ों साल बाद लोगों ने अपनी याददाश्त से जो कुछ लिखा तो उसमें अल्लाह के कलाम के साथ ईसा मसीह का कलाम और ईसाई प्रचारकों के विचार भी मिल गए। इस तरह असल हक़ीक़त फिर दब गई।
हज़रत ईसा अ. यह बताया करते थे कि ‘ईश्वर एक है, वह पिता से बढ़कर तुम सबसे प्रेम करता है। तुम भी अपने सारे मन, प्राण और आत्मा से उससे प्रेम करो। उसकी दी हुई व्यवस्था का पालन करो। मैं उसकी व्यवस्था को मिटाने नहीं वरन् उसे पूरा करने के लिए आया हूं। मैं अपने भेजने वाले से बड़ा नहीं हूं। मैं उसी की इबादत करता हूं और उसी से प्रार्थना करता हूं। तुम भी उसी की इबादत करो और उसी से प्रार्थना करो। तुम तब तक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते जब तक कि तुम बच्चों जैसे न हो जाओ।‘
उनके कलाम में यह सब लिखा हुआ मिलता है लेकिन बाद में ईसाईयों में भी लालची लोग धर्म की गददी पर बैठ गए और अपनी तरफ़ से ही बेबुनियाद बातों को धर्म बना दिया, जैसे कि ईसा मसीह ईश्वर के इकलौते पुत्र थे। हम सब जन्म से ही पापी हैं। इसीलिए मर्द को कमाने के लिए पसीना बहाना पड़ता है और औरत को बच्चा पैदा करने में दर्द होता है। हमारे पाप क्षमा करने के लिए ईश्वर ने अपने इकलौते पुत्र को सलीब पर लटका कर मार दिया। हमारे पाप क्षमा हो गए हैं। हमें ईश्वर की व्यवस्था का पालन करने की ज़रूरत नहीं है। ईश्वर ने अपना सब कुछ ईसा मसीह को दे दिया है। अब हमें ईसा के सामने ही सज्दा करना चाहिए और उसी से प्रार्थना करनी चाहिए।
यहूदी आलिमों ने कहा कि ईसा अलैहिस्सलाम ईश्वर की निंदा यानि कुफ़्र करते हैं और ईसाई आलिमों ने कहा कि ईसा मसीह ने हमारे पापों के बदले अपनी जान देकर हमें व्यवस्था से मुक्त कर दिया है।
उनके बारे में दोनों ने ही झूठ कहा और यक़ीनन उनके बारे में जो भी झूठ गढ़ता है, असल में वही कुफ़्र (ईशनिंदा) करता है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपना नबी व रसूल बनाया। उन्होंने भी लोगों को वही पैग़ाम सुनाया जो कि उनसे पहले हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम सुना चुके थे। नतीजा यह हुआ कि जो लोग पहले मूसा अ. और ईसा अ. के साथ दुश्मनी कर चुके थे। वे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भी जानी दुश्मन हो गए।
वे कौन थे ?
ये वे लोग थे जो उस वक्त लोगों को राह दिखाने के उन्हें गुमराह कर रहे थे। ये लोग धर्म और राजनीति की गददी पर बैठे हुए थे। इन्होंने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल करने की कई बार कोशिश की लेकिन अल्लाह ने हर बार उन्हें बचाया यहां तक कि पूरा क़ुरआन नाज़िल हो गया और पूरी सुरक्षा के साथ उसे लिख लिया गया। सैकड़ों लोगों ने पूरा क़ुरआन हिफ़्ज़ (कंठस्थ) कर लिया और इस तरह क़ुरआन लोगों के दिलों पर नक्श हो गया। पांच वक्त नमाज़ में क़ुरआन पढ़ा जाता। जिसे ख़ास व आम सभी लोग सुनते और याद करते। इस तरह क़ुरआन फैलता रहा और बिना किसी कमी बेशी के एक नस्ल से दूसरी नस्ल तक पहुंचता रहा। फिर मशीनी छपाई का दौर आया और कंप्यूटर और इंटरनेट का दौर आ चुका है। इस तरह क़ुरआन एक ऐसे दौर में दाखि़ल हो चुका है, जहां क़ुरआन में किसी तरह की कोई कमी बेशी नहीं की जा सकती। यह एक अटल हक़ीक़त है।
इसी के साथ यह भी एक सच्चाई है कि ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं जो कि क़ुरआन के फैलाव को रोकना चाहते हैं।
क़ुरआन मजीद को जलाने की निंदनीय हरकत का मक़सद यही था।
इन्हीं लोगों ने क़ुरआन में शक पैदा करने के लिए ‘अलफ़ुरक़ानुल हक़‘ के नाम से कुछ तैयार किया और दावा किया कि हमने क़ुरआन के मिस्ल एक किताब तैयार कर ली है। क़ुरआन के आलिमों ने जब इसे देखा तो यह एक साज़िश निकली और इसके पीछे भी वही लोग निकले जो हमेशा से नबियों को क़त्ल करते आए हैं और अल्लाह के कलाम को ग़ायब करते आए हैं। वे अल्लाह के कलाम, क़ुरआन को अब ग़ायब तो नहीं कर पाएंगे लेकिन उसके बारे में अफ़वाह फैलाने से और उसके बारे में शक पैदा करने से बाज़ नहीं आएंगे।
ताशक़ंद में एक नुस्ख़े को क़ुरआने करीम का उस्मानी नुस्ख़ा कहा जाता है। इससे छेड़छाड़ करना भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है। दूसरी जगहों पर भी इन्होंने कुछ कर रखा होगा।
यह फ़ित्नों का दौर है। इस दौर में हरेक ईमान वाले को होशियार और ख़बरदार रहना ज़रूरी है।
अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब का अहसान है कि दुश्मने हक़ इस साज़िश से मुसलमानों को कोई नुक्सान पहुंचा पाते। उससे पहले ही उन्होंने इस साज़िश को बेनक़ाब करके मुसलमानों को आगाह कर दिया।
क़ुरआने करीम के साथ कोई भी छेड़छाड़ ईमान वालों को दुखी करती है। इससे मुसलमानों के जज़्बात भड़कते हैं और दुश्मन यही चाहते हैं कि मुसलमान दुखी हो और जज़्बात से बेक़ाबू हो कर भड़के ताकि इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम किया जा सके।
मुसलमान अगर सब्र रखे और हिकमत व दानिशमंदी से दुश्मन की चाल को समझे तो वह उनकी साज़िश को नाकाम भी बना सकता है और दुनिया भर में क़ुरआन के पैग़ाम को आम भी कर सकता है।
क़ुरआन पूरी तरह सुरक्षित है। अपनी सुरक्षा के सुबूत के तौर पर यह ख़ुद काफ़ी है। पूरी दुनिया में फैली हुई करोड़ों प्रतियां इसका सुबूत हैं। लाखों हाफ़िज़ इसकी हिफ़ाज़त के गवाह हैं। इन सब प्रतियों में और इन सब हाफ़िजों के दिलों में एक ही क़ुरआन मौजूद है।
सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब की पिछली 25 साल की मेहनत हमारे सामने मौजूद है। उसमें उन्होंने क़ुरआन की हिफ़ाज़त को उन पहलुओं से भी दुनिया के सामने उजागर किया है, जो कि दुनिया से पोशीदा थे या जिन्हें बहुत कम लोग जानते थे।
किसी आदमी के कलाम को समझने में दुश्वारी पेश आए तो उससे हक़ीक़त दरयाफ़्त कर ली जाए या फिर उसकी ज़िंदगी भर की मेहनत को, उसकी दूसरी किताबों और तक़रीरों को भी सामने रखा जाना चाहिए।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के बाद अब कोई नया नबी नहीं आएगा। दुनिया की 7 अरब की आबादी में 153 करोड़ मुसलमान हैं। बाक़ी साढ़े पांच अरब ग़ैर मुस्लिमों तक अल्लाह के पैग़ाम को पहुंचाना मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है। इस ज़िम्मेदारी से मुसलमानों में आम ग़फ़लत है यहां तक कि जो लोग आलिम कहलाते हैं, उनमें भी कोई कोई ही इस अज़ीम फ़र्ज़ को अंजाम दे रहा है।
दीन की दावत के बजाय लोगों के ज़हन में मसलक और फ़िरक़ापरस्ती हावी हो गई है। इससे ग़ुलू और तशददुद (कटटरता और हिंसा) को फ़रोग़ मिलता है। एक मसलक दूसरे मसलक से भिड़ना सवाब का काम समझता है। जो लोग ज़िंदगी में किसी एक को भी काफ़िर से मोमिन नहीं बनाते। वे लाखों करोड़ों लोगों को आसानी से काफ़िर क़रार देते हैं।
जिसे काफ़िर क़रार दें तो उसकी इस्लाह की कोशिश भी तो करें।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक एक अधर्मी नास्तिक (काफ़िर) के पास सत्तर सत्तर बार जाकर उसकी इस्लाह की कोशिश करते थे।
लोगों पर कुफ़्र का फ़तवा जारी करने वाले उनमें से किसी के पास सात बार भी नहीं जाते बल्कि एक बार जाना भी ज़रूरी नहीं समझते।
ये लोग नबी स. की सुन्नत से कटकर जी रहे हैं और समझते हैं कि हम दीनदार हैं।
हक़ीक़त में दीन आज अजनबी हो चुका है।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लन इरशाद फ़रमाया है-
‘बदाअल इस्लामु ग़रीबा सयऊदो कमा बदा‘
यानि इस्लाम अजनबियत से शुरू हुआ और अन्क़रीब अजनबियत की तरफ़ ही लौट जाएगा।‘
दीने इस्लाम की दावत देने वाले शख्स पर ही जब कुफ़्र का फ़तवा सादिर कर दिया जाए तो इस हदीसे पाक की हक्क़ानियत हमारे सामने रोज़े रौशन की तरह अयां हो जाती है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम जैसे जलीलुल क़द्र पैग़म्बर पर उलमा ए वक्त कुफ़्र का फ़तवा लगा चुके हैं तो उम्मते मुहम्मदिया के आम दाई पर इस तरह का फ़तवा सादिर कर देना कुछ अजब नहीं है। इस तरह के कामों के पीछे कई वजहों में से एक मसलकी तआस्सुब और हसद होता है। हसद ऐसी चीज़ है जिसकी वजह से हज़रत यूसुफ़ को उनके भाईयों ने ही कुएं में फेंक दिया था। जिन लोगों की तरबियत ख़ुद अल्लाह के नबी फ़रमा रहे हों, जब वे हसद के शिकार हो कर ख़ता कर सकते हैं तो फिर आज के दौर में इस तरह की दुश्मनियों के इम्कान मज़ीद बढ़ जाते हैं जबकि यह दौर ही नफ़्सपरस्ती का है।
दावते दीन की राह में इस तरह की रूकावटों का एक लम्बा इतिहास है। इसके बावजूद अल्लाह का दीन ज़मीन पर हमेशा से है और हमेशा रहेगा। किसी और की ज़िंदगी में दीन रहे या न रहे लेकिन दीन के दाई की ज़िंदगी में दीन हमेशा रहेगा। यही वे लोग हैं जिनसे दीन उस वक्त भी सीखा जा सकता है जबकि दीन अजनबी हो चुका हो।
अल्लाह सलामत रखे दीन के तमाम दाईयों को नेक तौफ़ीक़ दे नादान दोस्तों को,
आमीन !
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