Thursday, July 26, 2012

माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत


रमज़ान की फ़ज़ीलत व बरतरी के बारे में हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि ‘‘रमज़ान गुनाहों से पाक होने का महीना है, अहले वफ़ा का महीना है और उन का महीना जो अल्लाह का ज़िक्र करने वाले हैं। अगर यह महीना तेरे दिल की दुरूस्तगी न करेगा, गुनाहों से न बचाएगा, तो फिर कौन सी चीज़ उन चीज़ों से तुझे बचाएगी। इस महीने में तो मोमिनों के दिल मारिफ़त व ईमान के नूर से रौशन हो जाते हैं।
हज़रत मुजददिद अलिफ़ सानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि अगर इस महीने में किसी आदमी को नेक आमाल की तौफ़ीक़ मिल जाए तो पूरे साल यह तौफ़ीक़ उस के शामिल ए हाल रहेगी और अगर यह महीना बेदिली, बेफ़िक्री, तरद्दुद व इन्तशार के साथ गुज़रेगा तो पूरा साल इसी हाल में गुज़रने का अंदेशा है क्योंकि इस महीने का एक एक लम्हा क़ीमती है।
अल्लामा इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाह अलैह ने रोज़े के बारे में फ़रमाया है कि ‘‘यह अहले तक़वा की लगाम, मुजाहिदीन की ढाल और अबरार मुक़र्रबीन की रियाज़त है।
इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि ‘‘रोज़े का मक़सद यह है कि आदमी अख़लाक़े इलाहिय्या में से एक अख़लाक़ को तो अपने अंदर पैदा कर ले जिसे समदियत कहते हैं। वो यह है कि इम्कानी हद तक फ़रिश्तों की तक़लीद करते हुए ख्वाहिशात से ख़ाली हो जाए। जब यह अपनी ख्वाहिशात पर ग़ालिब आ जाता है तो आला इल्लिय्यीन और फ़रिश्तों के आफ़ाक़ तक पहुंच जाता है।
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी फ़रमाते हैं कि रोज़ा भूख प्यास, मैथुन को छोड़ना, तर्के मुबाशिरत, ज़ुबान, दिल और जिस्म के दूसरे अंगों को क़ाबू करने का महीना है।
चुनांचे रमज़ान रहमतों के नुज़ूल, बरकात के ज़ुहूर, सआदतों के हुसूल और अल्लाह के फ़ज़्ल की तलाश व जुस्तजू का महीना है। इस महीने में रहमतें इस तरह नाज़िल होती हैं कि हम उन का अहाता भी नहीं कर सकते। 

लेखक - हमीदुल्लाह क़ासमी कबीर नगरी, राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 26 जुलाई 2012 पृष्ठ 4, 
लेख ‘ईनाम व इकराम का महीना है‘ का एक अंश

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