Thursday, February 28, 2013

सच्चा गुरू पाना कितना आसान ? The hundred


सत्य सामने होता है लेकिन आदमी उसे देख नहीं पाता। उसकी आंखों पर हठ और  अहंकार का पर्दा पड़ा रहता है। ऐसे लोगों के लिए डा. माइकल एच. हार्ट एक बेहतरीन मिसाल हैं। वह एक ईसाई परिवार में जन्मे। उन्होंने दुनिया को प्रभावित करने वाले 100 सबसे बड़े व्यक्तियों का अध्ययन किया और उन्होंने यह अध्ययन अपने  पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर किया। नतीजा यह हुआ कि उन्हें सच नज़र आ गया। उन्होंने इन 100 महान हस्तियों में सबसे पहले नंबर पर पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. को रखा। मशहूर अमेरिकी डाक्टर माइकल हार्ट (Michael H. Hart) ने अपनी किताब में लिखा है कि 
‘आप इतिहास के अकेले इंसान हैं जो इन्तिहाई हद तक कामयाब रहे, मज़हबी सतह पर भी और दुनियावी सतह पर भी‘,
He was the only man in history who was supremly successful on both the religious and secular levels.
जो लोग सच्चे गुरू की खोज में हैं। उनके लिए यह पुस्तक विशेष रूप से सहायक है। उनकी यह पुस्तक पीडीएफ़ फ़ाइल के रूप में ऑनलाइन भी उपलब्ध है। लिंक यह है-
The 100 -Michael Hart.pdf


सच्चा गुरू अपने कर्मों से पहचाना जाता है। बस मन में कोई हठ और दुराग्रह न हो।

सावधान ! मदरसे और मस्जिद के लिए चंदे इकठ्ठा करने के नाम पर फैल रहा है कमीशनख़ोरी और ठगी का धंधा


मदरसे और मस्जिद के लिए चंदा इकठ्ठा करने का काम शहर के प्रतिष्ठित लोगों को करना चाहिए। इससे लोगों को ऐतबार भी आएगा और वे ज़्यादा मदद करेंगे। दीन-धर्म को ठगी और कमीशनख़ोरी के लिए इस्तेमाल करने वाले तत्वों पर भी लगाम लगेगी।
दीन-धर्म को आय का ज़रिया बना लिया जाए तो दीन-धर्म का रूप बदलता चला जाता है। आपको ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो कि मस्जिद और मदरसे बनाने के लिए मुसलमानों से चंदा इकठ्ठा करते हैं। लोग बिना छानबीन किए ही किसी को भी रक़म पकड़ा देते हैं। यह ग़लत है।
बहुत से लोग किसी मदरसे या मस्जिद के लिए नहीं बल्कि सिर्फ़ उनके नाम पर अपने लिए चंदा इकठ्ठा कर रहे होते हैं और ऐसे लोग भी हैं कि जो इकठ्ठा होने वाली रक़म को मदरसे या मस्जिद को ही देते हैं लेकिन वे उसमें 40 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक कमीशन लेते हैं।
इस कमीशनबाज़ी की वजह से अच्छी ख़ासी मस्जिदों को ढहाकर नए सिरे से बनाया जा रहा है। ये मस्जिदें पुरानी स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना होती हैं लेकिन अपनी ग़र्ज़ के सामने ये स्थापत्य कला की ख़ूबसूरती और उसकी मज़बूती को, हर चीज़ को दरकिनार कर देते हैं। पुराने तर्ज़ की खुली हुई मस्जिदों में नमाज़ अदा करके जो सुकून मिलता है। वह आज की बंद मस्जिदों में नहीं मिल सकता। हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मस्जिद बिल्कुल सादा थी। शुरू में उसमें सिर पर छत और पांव के नीचे चटाई भी न थी। वह मस्जिद बिल्कुल क़ुदरती माहौल में थी। नमाज़ पढ़ने वालों पर सूरज की रौशनी हर तरफ़ से पड़ती थी, उन्हें ताज़ा हवा मिलती थी। उनके पांव ज़मीन से टच होते थे और उनके सिर पर खुला आसमान होता था। क़ुदरती माहौल सुकून देता है और बहुत सी बीमारियों से बचाता है। नए तर्ज़ की मस्जिदें बनाने की होड़ में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मस्जिद की तर्ज़ को भुला दिया गया है।
मस्जिदों को सादा रखा जाता तो उनके नाम पर धंधा और ठगी करने वाले पनपते ही नहीं। ऐसे भी मदरसे हैं। जिनकी तरफ़ से चंदा वसूल करने वाला कोई जाता ही नहीं है। जिसे भी देना होता है। वह ख़ुद ही मनी ऑर्डर कर देता है या किसी के हाथ भेज देता है। कुछ मदरसों ने ऐसे लोगों की तनख्वाह मुक़र्रर कर रखी है। यह ठीक है। उनके घर का ख़र्च भी चलना चाहिए।
कमीशनख़ोरी और ठगी इससे बिल्कुल अलग चीज़ है। चंदा वुसूल करने वाले ये लोग भी दाढ़ी, टोपी और शरई लिबास में होते हैं। इनके वेश-भूषा को देखकर धोखा न खाएं और अपनी रक़म चंदे में देने से पहले यह ज़रूर देख लें कि आप अपनी रक़म किसी ठग या कमीशनख़ोर को तो नहीं दे रहे हैं ?