Monday, December 26, 2011

स्वर्गिक शांति का ख़ज़ाना है नमाज़ How to perfect your prayers (video)

नमाज़ का पूरा तरीक़ा जानने के लिए देखिए यह वीडियो

नमाज़ क्या है ?
नमाज़ एक मुकम्मल इबादत है और इबादत भी ऐसी है जो कि बंदे को रब से तुरंत जोड़ती है और उसका रूख़ सीधे रास्ते की तरफ़ मोड़ती है, तुरंत। नमाज़ की हैसियत दीन में ऐसी है जैसी कि इंसान के शरीर में सिर की हैसियत होती है। जिसका सिर गया उसकी जान गई।  नमाज़ सलामत है तो समझो दीन सलामत है। नमाज़ में सलामती और शांति है।
नमाज़ में बंदा क़ुरआन पढ़ता है और क़ुरआन सुनता है। सुनते सुनते क़ुरआन उसके दिल में बस जाता है। क़ुरआन अल्लाह का हुक्म है और एक नूर है। क़ुरआन अल्लाह का कलाम और उसकी हिदायत है जो बंदों को रास्ता दिखाता है, उन्हें भटकने से बचाता है। नमाज़ में आदमी तन ढक कर खड़ा होता है। नमाज़ में आदमी पाक होकर, पाक जगह पर और पाक कपड़े पहन कर खड़ा होता है। नमाज़ इंसान को पाक करती है।
बेशक नमाज़ बेशर्मी और गुनाह के कामों से रोकती है।
क़ुरआन में शिफ़ा है। नमाज़ में भी शिफ़ा है। आज का इंसान बीमार है। हरेक इंसान आज बीमार है। जो तन से ठीक हैं , मन से वे भी बीमार हैं। अच्छी ख़ुराक न मिले तो तन बीमार पड़ जाता है और अच्छी ख़ुराक न मिले तो मन भी बीमार पड़ जाता है। मन की ख़ुराक अच्छे विचार हैं। क़ुरआन ईश्वर अल्लाह का विचार है। सो क़ुरआन सबसे अच्छा विचार है, सबसे अच्छी बात है। मन इस पर मनन करता है तो उसे ख़ुराक मिलती है, उसमें आशा का भाव जागता है और मन से उदासी का भाव दूर होता है। उसमें सकारात्मकता आती है। मन हमदर्दी और परोपकार जैसे अच्छे विचारों से भर जाता है तो गंदे विचार के लिए जगह ही नहीं बचती। इस तरह मन भी पाक साफ़ हो जाता है। विचार अच्छे हों तो काम भी अच्छे होंगे और अच्छे काम का अंजाम भला ही होता है। अच्छा काम अपने अंदर ख़ुद एक पुरस्कार होता है। मन चंगा होता है तो कठौती में गंगा बहने ही लगती है यानि मन निर्मल हो तो उसके अंदर ज्ञानगंगा का झरना बहने लगता है। यह वह ईनाम है जो कि नमाज़ी को नक़द मिलता है और जिसे देखा भी जा सकता है।
नमाज़ इंसान को उसकी हक़ीक़त की पहचान कराती है। उसे ईश्वर-अल्लाह के सामने झुकना सिखाती है, उसमें विनम्रता और आजिज़ी जगाती है। इंसान में नर्मी हो तो वह दूसरों के साथ एडजस्ट कर सकता है। नमाज़ अहंकार को दूर करती है। नमाज़ के लिए इंसान अपने परिवार और अपने कारोबार को छोड़ कर आता है। नमाज़ इंसान के दिल से लालच और डर को भी दूर करती है। जो नमाज़ में अपने पैदा करने वाले के सामने नहीं झुकते वे अपने अहंकार में अकड़े हुए खड़े रहते हैं या फिर लालच और डर की वजह से किसी ग़लत जगह पर झुकते रहते हैं। नफ़ा और नुक्सान तो बस उस एक मालिक के हाथ में है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है। सारा संसार बस उसी का है और जो कुछ यहां होता है उसी की इच्छा से होता है। यहां कभी किसी को भलाई नसीब होती है और कभी बुराई। कभी वह परीक्षा होती है और कभी दंड। जो नमाज़ की तरफ़ नहीं आता वह सज़ा पा रहा है लेकिन वह जानता नहीं है। इससे बड़ी सज़ा क्या होगी कि आदमी गंदा और बीमार मन लेकर जिए और फिर किसी दिन इसी सड़ी हुई हालत में वह मर जाए , अपनी हक़ीक़त और अपना कर्तव्य जाने बिना ही ?
कचरे का अंजाम क्या है सिवाय इसके कि उसे जला दिया जाए ?

अज़ान क्या है ?
अज़ान एक पुकार है। इसमें बंदों को नमाज़ के लिए बुलाया जाता है। यह बुलावा केवल मुसलमान के लिए ही नहीं होता बल्कि हरेक इंसान के लिए होता है। जो आता है वह पाता है और जो नहीं आता वह खोता है।
मालिक की तरफ़ इंसान को बुलाया जा रहा है और सुनने वाला कभी पुकारने वाले की भाषा को देखता है और कभी उसकी वेष-भूषा को और इनमें से कोई न कोई बात देखकर वह मालिक की तरफ़ आने से रूक जाता है लेकिन जब ऐसा ही कोई आदमी उसे खाने-पीने और खेल-कूद के लिए बुलाता है तो फिर वही इंसान उसकी भाषा-संस्कृति पर कोई विचार तक नहीं करता और दौड़ा चला जाता है उसके बुलावे पर। अपने मालिक को ऐसे बंदे क्या जवाब देंगे ?
उन्हें सोचना चाहिए।
जिस मालिक ने हर वह चीज़ दी जो कि चाहिए थी। जिसने आकाश में घूमती हुई धरती पर हमारे लिए जीना सरल किया , जिसने  हवा, पानी और हरियाली का अनमोल ख़ज़ाना हमें दिया। जिसने जीवन साथी और बाल-बच्चे, मां-बाप और यार-दोस्त दिए। जो खाने-पीने के लिए देता है। जो हमें नींद और ताज़गी
देता है, उसे कभी शुक्रिया तक न कहा, उसके बुलावे पर कभी ध्यान ही न दिया। यह सबसे बड़ी नाशुक्री है। नाशुक्रा आदमी इंसानियत के दायरे से ही ख़ारिज है। ऐसा आदमी अपने पद से गिर गया और अपनी हद से निकल गया।
नमाज़ पतित पावनी है
नमाज़ इंसान को फिर से उसके पद पर आसीन करती है और उसे उसकी हद में रखती है। आदमी का पद दरअस्ल ‘बंदगी का पद‘ है। बंदा वह है जो अपने रब की मर्ज़ी पर चलने वाला हो न कि अपनी मनमर्ज़ी पर। किताब सुनते रहो और अपना हिसाब करते रहो कि एक दिन हरेक को अपना हिसाब देना है। हर आदमी बार बार देखता रहे कि वह अपने रब की मर्ज़ी पर चल रहा है या उससे हटकर अपनी मर्ज़ी पर ?
जो यह अभ्यास रोज़ाना करता रहेगा वह धीरे धीरे रब की मर्ज़ी पर चलने वाला बंदा बन जाएगा।
रब की मर्ज़ी यह है कि इंसान धरती में एक अच्छा इंसान बनकर रहे और लोगों को भी सत्य का उपदेश करता रहे। 
रब की मर्ज़ी यह है कि इंसान कोई जुर्म न करे, कोई पाप न करे, वह धरती में ख़ुद भी शांति के साथ रहे और दूसरों को भी शांति के साथ रहने दे। जिसका जो हक़ बनता है उसे अदा करे और किसी पर कोई ज़ुल्म ज़्यादती न करे बल्कि जहां भी ज़ुल्म ज़्यादती हो वहां हद भर उसे मिटाने की कोशिश करे। वह बोले तो अच्छी बात बोले वर्ना चुप रहे। रब की मर्ज़ी यह है कि इंसान अपने हरेक रूप में ख़ुद को अच्छा बनाए। पति-पत्नी, मां-बाप, औलाद, पड़ोसी, जज, हाकिम और सैनिक, जितने भी रूप हैं उन सबमें वह अच्छा हो। उसकी शरारत से लोग सुरक्षित हों। उसके पड़ोस में कोई भूखा न सोता हो। अपने माल को वह ग़रीब, अनाथ और ज़रूरतमंदों पर भी ख़र्च करता हो और बदले में उनसे कुछ न चाहता हो, शुक्रिया तक भी नहीं। रब यह चाहता है कि बंदा यह सब करे और मेरे कहने से करे और सिर्फ़ मेरे लिए ही करे।

लोग ऐसा करें तो समाज से ऊंचनीच, छूतछात, वेश्यावृत्ति, नशाख़ोरी, दहेज हत्या, कन्या भ्रूण हत्या आदि जरायम का मुकम्मल सफ़ाया हो जाएगा। भय, भूख, अन्याय और भ्रष्टाचार का ख़ात्मा ख़ुद ब ख़ुद हो जाएगा। उनके लिए अलग से कोई आंदोलन चलाने की ज़रूरत ही नहीं है। जब तक लोग ऐसा नहीं करेंगे तब तक वे कुछ भी कर लें, इनमें से कुछ भी ख़त्म होने वाला नहीं है और शांति आने वाली नहीं है।
शांति चाहिए तो नमाज़ क़ायम करो।
व्यक्तिगत नमाज़ व्यक्ति को शांति देती है और सामूहिक नमाज़ उस पूरे समूह को शांति देती है। पूरी दुनिया को शांति चाहिए तो पूरी दुनिया नमाज़ क़ायम करे।
आओ नमाज़ की तरफ़,
आओ भलाई की तरफ़
दुनिया की भलाई नमाज़ में है।
नमाज़ दुनिया में शांति की स्थापना करती है।
शांति स्वर्ग से है। जो शांति को महसूस करता है, वह अपने अंदर स्वर्ग के आनंद को महसूस करता है। यही वह स्वर्ग का राज्य है जिसे धरती पर लाना है। ईश्वर की इच्छा यही है कि हम उसके नाम से शांति पाएं। नमाज़ के लिए वह हमें इसीलिए बुलाता है ताकि हम शांति पाएं।
शांति क़ायम करना और उसे क़ायम रखना इंसान की बुनियादी ज़रूरत है और इसी को मालिक ने हमारा बुनियादी कर्तव्य और हमारा धर्म निर्धारित कर दिया है।
शांति हमारी आत्मा का स्वभाव और हमारा धर्म है।
शांति ईश्वर-अल्लाह के आज्ञापालन से आती है।
नमाज़ इंसान को ईश्वर-अल्लाह का आज्ञाकारी बनाती है।
नमाज़ इंसान को शांति देती है, जिसे इंसान तुरंत महसूस कर सकता है।
जो चाहे इसे आज़मा सकता है और जब चाहे तब आज़मा सकता है।
उस रब का दर सबके लिए सदा खुला हुआ है। जिसे शांति की तलाश है, वह चला आए अपने मालिक की तरफ़ और झुका दे ख़ुद को नमाज़ में।
जो मस्जिद तक नहीं आ सकता, वह अपने घर में ही नमाज़ क़ायम करके आज़मा ले।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।

नमाज़ का तरीक़ा सीखने के लिए देखिए यह हिंदी किताब

विभिन्‍न प्रकार की नमाज और उन्हें पढने का तरीका namaz ka tariqa



लाखों हिन्‍दी जानने वाले हमारे भाईयों-बहनों को अरबी न समझने के कारण नमाज़ पढने में दिक्‍कत होती है, उनकी परेशानी को देखते हुये, पेश है ऐसी किताब जो नमाज विषय पर हिन्‍दी में सभी जानकारी देती है .