भारत एक विशाल देश है। इसमें बहुत सी संस्कृतियों के लोग रहते हैं। अपनी अपनी परंपराओं के पालन के बावजूद वे सभी एक दूसरे का ध्यान रखते हैं। अधिकतर भारतीय शान्ति-प्रिय हैं। उनका धर्म-मत कुछ भी हो लेकिन वे शान्ति-प्रिय हैं। भारत के ये सभी सम्मानित नागरिक अपने अपने कर्म को करते हैं और अपनी सेवाओं का लाभ सबको देते हैं। एक टीचर का धर्म-मत कुछ भी हो लेकिन वह हरेक जाति और प्रदेश के बच्चों को पढ़ाता है। एक डॉक्टर किसी भी धर्म-मत का हो लेकिन वह हरेक धर्म-मत के मरीज़ों का इलाज करता है। पाकिस्तान तक के मरीज़ों का इलाज भारत का डॉक्टर करता है।
मनुष्य अपने स्वभाव से मेल-मिलाप को पसंद करता है। आधुनिक शिक्षा ने ऊंच-नीच और छूतछात को ख़त्म करने में बहुत मदद की है। इसके लिए हमें लॉर्ड मैकाले का आभारी होना चाहिए। अंग्रेज़ शासकों के ज़ुल्म अपनी जगह हैं और वे निन्दनीय ही हैं लेकिन उन्होंने समाज का वह ढांचा ही तोड़कर रख दिया है। जिसमें एक इंसान दूसरे इंसान को छूना पाप समझता था।
आधुनिक शिक्षा से हिन्दू संस्कृति को गहरा आघात लगा है तो उस ईरानी और मुग़लई संस्कृति पर भी आघात लगा है जो कि मुसलमानों में रच बस गई थी। आधुनिक संस्कृति के कारण भारत की पुरानी संस्कृतियों में भारी परिवर्तन आ गया है। इसके कुछ नुक्सान ज़रूर हैं लेकिन इसके कुछ फ़ायदे भी हैं। उन फ़ायदों में से एक यह है कि आज एक इंसान दूसरे इंसान को छू सकता है। आज एक इंसान दूसरे इंसान के विचारों को सुन और समझ सकता है। आज हरेक इंसान शिक्षा पाकर उन्नति कर सकता है। आज हरेक इंसान उस मान्यता के अनुसार अपना जीवन गुज़ार सकता है, जिसे वह पसंद करता है, जिसे वह सत्य समझता है।
ट्रांसपोर्टेशन और मोबाईल व इंटरनेट के ज़रिये आज एक इंसान दूसरे देश के इंसान के दुख-दर्द को भी शेयर कर सकता है। एकता और भाईचारे के अवसर आज पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा हैं। इसी के साथ इन सब जगहों पर अमन के दुश्मन भी मौजूद हैं। ये शैतान इंसान और इंसान के बीच प्यार के रिश्ते को पनपते हुए नहीं देख सकते। ये हमेशा भड़काऊ बातें करते हैं।
शैतान कभी नहीं चाहता कि इंसान अपने मालिक के दिखाए सीधे रास्ते पर चले। यही वजह है कि धार्मिक लोगों को हमेशा सताया गया। धार्मिक लोग अच्छे गुणों से युक्त होते हैं। जिनमें कि सब्र यानि धैर्य भी एक गुण है।
सत्य को सामने लाने वाले हरेक आदमी को सब्र के साथ अपना काम करना चाहिए। सत्य की चाह हरेक इंसान के अंदर पाई जाती है। आज इंटरनेट पर या समाज में जब सत्य को सामने लाया जाता है तो शैतान उसका विरोध करता है। ये थोड़े से होते हैं। उनसे बहुत ज़्यादा लोग वे होते हैं जो सत्य को सुनकर अपने मन में विचार करते रहते हैं। सत्य का विचार उनके मन की भूमि में किसी बीज की तरह जम जाता है और अनुकूल समय आते ही वह स्वयं ही अंकुरित हो जाता है।
समाज के सामने सत्य को साक्षात करने वाले को चाहिए कि वह अपना काम करता रहे। प्रकृति को अपना काम करना बख़ूबी आता है।
हर आदमी जानना चाहता है कि मैं क्यों पैदा हुआ हूं और मुझे क्या करना चाहिए ?
ईश्वर ने नबियों और ऋषियों के माध्यम से मनुष्य के ऐसे हरेक सवाल का जवाब दिया है। वे अपने पीछे जो वेद और बाइबिल छोड़कर गए हैं। वे आज भी उपयोगी हैं। जो इनसे मानना चाहे मान ले कि एक ईश्वर ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकता है।
यही बात क़ुरआन बताता है।
जो क़ुरआन का विरोध करता है। वह वेद या बाइबिल का पालन भी नहीं करता। जो इन सबसे अलग हटकर चलता है वही शैतान है। यही आज धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं। धर्म का ठेकेदार शैतान भी हो सकता है। धार्मिक आदमी और धर्म के ठेकेदार में अंतर होता है। धर्म का ठेकेदार पहले दीन-धर्म को बदलता है और फिर वह उसे व्यवसाय बनाकर उससे आय पैदा करता है। वह लोगों को अपना माल नहीं देता। धार्मिक आदमी परोपकार में अपना माल ख़र्च करता है। धर्म का ठेकेदार ख़ुदग़र्ज़ और लालची होता है जबकि धार्मिक आदमी परोपकारी और बेलालच होता है।
समाज में धार्मिक आदमी कम हैं।
धर्म बढ़े और अधर्म मिटे,
धर्म की जय हो और अधर्म पराजित हो,
इसके लिए हम सबको सब्र के साथ अपना काम करते रहना चाहिए।
अपने काम से मतलब यह है कि जो भी सत्य हो, हम उसे मानते रहें और एक दूसरे का दुख दूर करने के लिए जो भी बन पड़े, हम उसे ज़रूर करें।
शैतान कम हैं। आज भी नेकदिल आदमी ज़्यादा हैं। हम सबको एक दूसरे के काम आना है। यही नेकी है। नेकी करना ही हमारा अपना काम है। ईश्वर नेक काम करने के लिए ही कहता है।
जो सब्र नहीं कर सकता। वह ईश्वर के दिखाए मार्ग पर भी नहीं चल सकता और जो उसके दिखाए मार्ग पर नहीं चलता। वह बुरे रास्ते पर चलकर बर्बाद हो जाता है।
हरेक आदमी को चाहिए कि वह देख ले कि वह ईश्वर के दिखाए रास्ते पर चल रहा है या उससे हटकर चल रहा है ?
परमेश्वर क़ुरआन में हमारा मार्गदर्शन करते हुए कहता है कि
गवाह है गुज़रता समय, कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक-दूसरे को हक़ की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की. [103:3] फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
इसके सच होने में किसे सन्देह हो सकता है सिवाय नास्तिक के !
जो सच है, सिर्फ़ वही है क़ुरआन में.