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Allama S. Abdullah tariq sahab Masjid me Namaze Juma ada karane ke baad, 1 |
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Allama S. Abdullah tariq sahab Masjid me Namaze Juma ada karane ke baad, 2 |
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Allama S. Abdullah tariq sahab Masjid me Namaze Juma ada karane ke baad, 3 |
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Dr. Anwer Jamal Yusuf Zai with Allama S. Abdullah tariq sahab 30 November 2012 |
अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब रियासत रामपुर में रहते हैं और दीन का काम करते हैं। इसलाम को उन्होंने ‘डिस्कवर‘ किया है। इसलाम को डिस्कवर करने का मतलब यह है कि उन्होंने बरसों बरस इसलाम को समझने में लगाए हैं और जब वह समझ गए तो फिर उन्होंने अपनी ज़िंदगी दीन को समझाने के लिए ही वक्फ़ कर दी। पिछले 25 बरसों से वह यह काम कर रहे हैं। बिना किसी भेदभाव के वह दीन के सच्चे स्वरूप का ज्ञान सबको दे रहे हैं। इससे हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि ईसाईयों और दूसरे मत-संप्रदायों के मानने वालों में भी दीन-धर्म की सही जानकारी आम हो रही है। नफ़रतें और दूरियां कम हो रही हैं।
अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब ने पाया है कि इसलाम सलामती का दीन है। समाज की या किसी फ़र्द की सलामती को ख़तरा पैदा हो जाए, ऐसा कोई भी काम करने के लिए इसलाम नहीं कहता। आतंकवाद में मासूम नागरिकों का ख़ून बहाना तो दूर इसलाम तो मैदाने जंग में भी औरतों, बच्चों, सन्यासियों और हथियार डालने वालों पर वार करने से मना करता है।
इसलाम एक दीन है। दीन का अर्थ है एक व्यवस्था और एक क़ानून । यह व्यवस्था और क़ानून पैदा करने वाले रब की तरफ़ से हरेक के लिए मुक़र्रर है। जब आदमी इस व्यवस्था और क़ानून को भूलकर अपने नेताओं और गुरूओं की व्यवस्था और क़ानून पर चलने लगता है या अपने मन की मर्ज़ी के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने लगता है तो लोग परेशानियों के शिकार हो जाते हैं। समाज ख़ुदा को भूल जाता है यानि ख़ुदा के हुक्म को भूल जाता है। राजनीति को दीन से अलग एक गंदी चीज़ समझ लिया जाता है और दुनिया छोड़कर ध्यान और ज़िक्र को ही अल्लाह की रज़ा पाने का ज़रिया समझ लिया जाता है। तब दीन-धर्म का लोप हो जाता है। रिब्बी, पंडित, पादरी और मौलवी लोगों को दीन-धर्म के बजाय मत-मज़हब की तालीम देते हैं और समाज में बहुत से संप्रदाय खड़े कर देते हैं। लोग अपनी मुक्ति के लिए उनकी बात मानना ज़रूरी समझते हैं। ये मौलवी अपने संप्रदाय को मुक्ति (नजात) का ठेकेदार और दूसरे संप्रदायों को जहन्नम का मुस्तहिक़ मानते है। इससे नफ़रत और झगड़े पैदा होते हैं। एक इंसान दूसरे का ख़ून बहाता है और यह सब वह अल्लाह के नाम पर और दीन की ख़ातिर करता है। जो मुसलमान आलिम इस तरह के काम कराते हैं वे इग़वा ए शैतानी (शैतान द्वारा मानसिक अपहरण) के शिकार होते हैं या फिर ख़ुद ही शैतान बन चुके होते हैं।
दीन की सही जानकारी के आम होने से उन लोगों को बेचैनी हो रही है जो ख़ुद को आलिम कहते हैं और बिना कुछ किए पब्लिक के माल पर ऐश उड़ाते हैं। कोई मस्जिद बनाने के नाम पर और कोई मदरसा चलाने के नाम पर चंदा इकठ्ठा करता है और उसका 40 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत ख़ुद डकार जाता है। कोई ख़ुद को क़ाज़ी कहता है और निकाह पढ़ाने के एवज़ 1 हज़ार रूपये से लेकर 5 हज़ार तक बल्कि ज़्यादा भी ले लेता है। इन्हीं लोगों में वे लोग भी हैं जो मियां बीवी के झगड़े का फ़ायदा उठाते हैं। कोई आदमी ग़ुस्से में आकर अपनी बीवी को तलाक़ दे देता है तो ये आलिम उससे ‘हलाला‘ करने के लिए कहते हैं और उसकी बीवी से निकाह कर लेते हैं। एक मौलवी ने तो बाक़ायदा का हलाला के लिए पूरा सेंटर ही क़ायम कर लिया है। हलाला का यह तरीक़ा इसलामी शरीअत में ही नहीं है कि मुददत मुक़र्रर करके तलाक़ देने वाला शौहर अपनी बीवी का निकाह किसी से करवाए और फिर उससे तलाक़ दिलवाए। तलाक़ का सही तरीक़ा क्या है , क़ुरआन की सूरा ए तलाक़ में इसकी पूरी जानकारी दी गई है।
हरेक गुमराही और पाखंड की जड़ काटने के लिए क़ुरआन काफ़ी है। सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब ने क़ुरआन का इल्म आम किया। उन्होंने बिना कोई रक़म लिए निकाह करवाने शुरू किए। उन्होंने बताया कि ग़ुस्से में आकर 3 तलाक़ एक साथ देने से बीवी पराई नहीं हुई। वह उसकी तरफ़ रूजू कर सकता है। उसे किसी से हलाला कराने और तलाक़ दिलवाने की ज़रूरत सिरे से ही नहीं है। यह सब क़ुरआन और शरीअत के साथ खिलवाड़ करना है।
उनके इन कामों से रामपुर के मज़हबी ठेकेदारों को अपनी दुकानों पर ताले पड़ते नज़र आए। उन्होंने सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब पर उस जुर्म का इल्ज़ाम धर दिया जो कि उन्होंने कभी किया ही नहीं कि वह क़ुरआन को महफ़ूज नहीं मानते।
क़ाज़ी ए शरअ व मुफ़्ती ए ज़िला रामपुर सैयद शाहिद अली हसनी नूरी जमाली, शेख़ुल हदीस जामियातुल इस्लामिया पुराना गंज, रामपुर ने सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब पर कुफ़्र का फ़तवा लगा दिया
इतने लंबे अल्क़ाब वाला यह शख्स कौन है ?
ये वह साहब हैं जिनके एक शागिर्द ने अपनी बीवी को ग़ुस्से में आकर 3 तलाक़ दे दी और मदद के लिए इनके पास आया तो इन्होंने उससे कहा कि तुम हलाला कराओ, मुझसे करवा लो तो मैं तुम्हारी बीवी को तलाक़ दे दूंगा। इस तरह तुम अपनी बीवी से फिर से निकाह कर लेना। उनके शागिर्द ने अपना उस्ताद मानकर अपनी बीवी इन्हें दे दी। इन्होंने उससे निकाह कर लिया और फिर उसे तलाक़ नहीं दी। वह शागिर्द रो रो कर लोगों को अपनी दास्तान सुनाता रहा। इस तरह के काम दीन के नाम पर करने वाले यह साहब रामपुर ज़िले के मुफ़्ती बने हुए हैं और लोगों के पीर भी बने हुए हैं। यही लोग हैं जो दीन को बदनाम करते हैं।
इस प्रोग्राम में शरीक होने वाले मुक़र्रिर हज़रात के नाम ये हैं-
1. मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अय्यूब ख़ां साहब शेख़ुल हदीस, जामिया नईमिया, मुरादाबाद
2. हाफ़िज़ ए अहादीस हज़रत मौलाना सग़ीर अहमद रिज़वी नाज़िमे आला जामिया क़ादिरिया, रिछा, बरेली
3. मुफ़्ती मुहम्मद शमशाद अहमद साहब रिज़वी, मुफ़्ती ए शहर बदायूं
4. डा. मुहम्मद हसीन साहब बरेलवी, चेयरमैन अरेबिक एंड पर्शियन डिपार्टमेंट, बरेली कॉलिज, बरेली
5. मौलाना शहाबुददीन रिज़वी ख़तीब अहले सुन्नत, जनरल सेक्रेटरी जमाते रज़ा ए मुस्तफ़ा, बरेली शरीफ़
6. डा. हफ़ीज़ुर्रहमान जेएनयू, दिल्ली
रामपुर के उर्दू अख़बार ‘नाज़िम‘ के मुताबिक़ इस प्रोग्राम का आयोजन अंजुमन ग़ुलामाने रसूल तकिया मैमरान रामपुर ने किया है।
आज रॉयल मैरिज हॉल, ईदगाह रोड, रामपुर में मुफ़्ती साहब ने कई शहरों के अपने जैसे ‘आलिम‘ इकठ्ठा कर रखे हैं। जलसे में ज़्यादातर उनके मदरसे के तालिब इल्म हैं जबकि शहर की जनता न के बराबर है। यह इस बात की अलामत है कि मुसलमान जनता जागरूक हो रही है।
यह जलसा आज दिनांक 5 दिसंबर 2012 को सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक चला। इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई।
इस सिलसिले में मीडिया ने भी अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह अदा की हैं। उसने सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब का बयान भी छापा है जिसमें उन्होंने शहर की अवाम से अपील की है कि वे किसी के भड़काए में न आएं और संयम से काम लें।
मीडिया के इस अमल पर मुफ़्ती शाहिद साहब ने अपनी तक़रीर में व्यंग्य भी किया है। इसमें अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब की तक़रीर ‘दीन और मज़हब‘ की सीडी का एक हिस्सा दिखाकर अवाम को भड़काना चाहा लेकिन न तो कोई भड़का और न ही कोई हंगामा बरपा हुआ जो कि मुमकिन था। अल्लाह का शुक्र है कि यह जलसा सकुशल संपन्न हुआ।
इन तंगनज़र आलिमों और नक़ली पीरों की हालत को देखकर अल्लामा इक़बाल का शेर याद आ रहा है-
मीरास में आई है इन्हें मसनदे इरशाद
ज़ाग़ों के तसर्रूफ़ में हैं उक़ाबों के नशेमन
ज़ाग़ का अर्थ - कौआ